Mirza Ghalib Death Anniversary: रंगमच से लेकर टेलिविजन तक ग़ालिब के हर अन्दाज को बखूबी दिखाया गया है| हिंदी सिनेमा में मिर्जा ग़ालिब के नाम से पहली फिल्म बनी| जिसमें भारत भूषण ने ग़ालिब का किरदार निभाया था|
Mirza Ghalib Death Anniversary 2022: 15 फरवरी, 1869 को मिर्जा गालिब की म्रत्यु हो गयी थी| लेकिन आज भी वो शख्सियत हमारे दिल में, दिमाग में, किताबों में, अल्फाजों में, कहानियों में, प्रेम में, अहसासों में, ख्वाबों में, ख्वाहिशों में, जहन में, जिंदगी में जिन्दा है|
ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ| उर्दू अदब मिर्ज़ा ग़ालिब का शायराना अंदाज आज भी लोगों के जेहन में जिन्दा है| रंगमच से लेकर टेलिविजन तक ग़ालिब के हर अन्दाज को बखूबी दिखाया गया है| हिंदी सिनेमा में मिर्जा ग़ालिब के नाम से पहली फिल्म बनी| जिसमें भारत भूषण ने ग़ालिब का किरदार निभाया था|
सन् 1988 में गुलजार ने भी मिर्जा ग़ालिब पर एक सीरियल बनाया| जिसे काफी पसंद किया गया| जिसमें नसीरुद्दीन शाह ने ग़ालिब का रोल किया था| इस अंदाज में वे खूब जमे थे| एक वक्त था जब नसीर को देखते ही लोग ग़ालिब पुकारने लगते थे| नसीरुद्दीन शाह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मिर्जा गालिब की शायरी इतनी गहरी है कि दिमाग की नसें खोल देती है|
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गालिब का पूरा नाम असदुल्लाह था और उनका तखल्लुस पहले ‘असद’ था बाद में ‘गालिब’ रखा था| मिर्ज़ा गालिब ने अपने फारसी के 6600 शेर और उर्दू के 1100 शेर वाले दीवान पूरे किए थे| उनका यह संग्रह ‘दीवान’ कहलाता है| जिसका सीधा सा अर्थ है शेरों का संग्रह|
मिर्जा के कुछ अनसुने शेर:-
- दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
- आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
- हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
- दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
- कोई मेरे दिल से पूछे तिरे *तीर-ए-नीम-कश को
- ये ख़लिश कहां से होती जो जिगर के पार होता
- *तीर-ए-नीम-कश – आधा धंसा हुआ तीर
- *कासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूं
- फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
- फिर वही ज़िंदगी हमारी है
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