स्वतंत्र और संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंधों के विषय पर सर्वप्रथम वर्ष 1961 में वियना अभिसमय/कन्वेंशन हुआ। इस अभिसमय में एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया जिसमें राजनियकों को विशेष अधिकार दिये जा सकें। इसी के आधार पर राजनियकों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का प्रावधान किया गया।
इस संधि के तहत कोई भी मेज़बान देश अपने यहाँ रहने वाले दूसरे देशों के राजनयिकों को खास दर्जा देता है। इस संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन (International Law Commission) द्वारा तैयार किया गया था और वर्ष 1964 में यह संधि लागू हुई।
फरवरी 2017 तक इस संधि पर विश्व के कुल 191 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।
इस संधि में कुल 54 अनुच्छेद हैं।
इस संधि में किये गए प्रमुख प्रावधानों के अनुसार कोई भी देश दूसरे देश के राजनयिकों को किसी भी कानूनी मामले में गिरफ्तार नहीं कर सकता है। साथ ही राजनयिक के ऊपर मेज़बान देश में किसी तरह का कस्टम टैक्स भी नहीं लगाया जा सकता है।
वर्ष 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस संधि के समान ही एक और संधि का प्रावधान किया जिसे ‘वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस’ (Vienna Convention on Consular Relations) के नाम से जाना जाता है।
इस संधि के अनुच्छेद 31 के तहत मेज़बान देश किसी दूतावास में नहीं घुस सकता है तथा उसे दूतावास की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी उठानी होती है।
संधि के अनुच्छेद 36 के तहत अगर किसी विदेशी नागरिक को कोई देश अपनी सीमा के भीतर गिरफ्तार करता है तो संबंधित देश के दूतावास को बिना किसी देरी के तुरंत इसकी सूचना देनी होगी।
गिरफ्तार किये गए विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को भी संबंधित दूतावास या राजनयिक को फैक्स करके इसकी सूचना देनी होगी।
इस फैक्स में पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ्तारी की जगह और गिरफ्तारी की वजह भी बतानी होगी। यानी गिरफ्तार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुँच देनी होगी।
भारत ने वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए जाधव का मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाया था।
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