मृदुला रमेश द्वारा लिखित पुस्तक “वाटरशेड: हाउ वी डिस्ट्रॉयड इंडियाज वाटर एंड हाउ वी कैन सेव इट” लॉन्च

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 मृदुला रमेश द्वारा लिखित पुस्तक “वाटरशेड: हाउ वी डिस्ट्रॉयड इंडियाज वाटर एंड हाउ वी कैन सेव इट” लॉन्च 

मृदुला रमेश द्वारा लिखित पुस्तक "वाटरशेड: हाउ वी डिस्ट्रॉयड इंडियाज वाटर एंड हाउ वी कैन सेव इट" लॉन्च


हाल ही में, मृदुला रमेश ने “वाटरशेड: हाउ वी डिस्ट्रॉयड इंडियाज वॉटर एंड हाउ वी कैन सेव इट (Watershed: How We Destroyed India’s Water And How We Can Save It)” नामक एक नई किताब लॉन्च की है| मृदुला रमेश सुंदरम क्लाइमेट इंस्टीट्यूट की संस्थापक है, जो पानी और अपशिष्ट समाधान पर कार्य करती है और क्लीनटेक स्टार्ट-अप में एंजेल निवेशक है| 

मृदुला रमेश ने एक अन्य पुस्तक “द क्लाइमेट सॉल्यूशन (The Climate Solution)” भी लिखी है| वह नियमित रूप से जलवायु मुद्दों पर लिखती हैं| वह वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF), भारत के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की सदस्य और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आंध्र प्रदेश (AP) में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की चेयरपर्सन भी हैं|

मृदुला रमेश ने आगाह किया है कि भारत में आगे जल संकट और भी गहरा सकता है| यह किताब उन कारकों पर प्रकाश डालती है जिन्होंने भारत को इस संकट की ओर बढ़ाया है| इस पुस्तक में 5000 साल के इतिहास के साथ आज देश में चरम मौसम की घटनाओं और किसानों के विरोध से लेकर पानी से संबंधित भू-राजनीति, स्वच्छ प्रौद्योगिकी जैसे विषयों का भी जिक्र किया गया है|

हैचेट इंडिया’ द्वारा प्रकाशित किताब में कहा गया है, ”पिछले 150 वर्षों में भारत में उगाई जाने वाली फसलों के तरीके में बदलाव हुआ है| 19वीं शताब्दी में मुख्य रूप से बाजरा उगाने वाले देश से अब हम चावल और गेहूं उत्पादक देश बन गए हैं।”

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किताब में कहा गया है, ”इस परिवर्तन के लिए बांधों और नहरों पर भारी खर्च करने की आवश्यकता होती है, जिससे शहरी जल आपूर्ति स्वाभाविक रूप से महंगी हो जाती है।

भारत की बढ़ती आबादी, शहरीकरण और धन को देखते हुए, भारत की पानी की कुल मांग का लगभग आधा 2030 तक पूरा नहीं हो सकेगा।” रमेश ने कहा है कि जल आपूर्ति, वर्षा जल संचयन क्षमता, पानी की बर्बादी, उपचारित और पुन: उपयोग किए गए पानी के संबंध में जल सर्वेक्षण सर्वेक्षण शुरू किया जाना चाहिए।

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